उठ! उठ! और नींद से हुशियार हो सोने वाले।
वरना पछताते हैं फिर वक्त के खोने वाले ।।
मनुष्य जन्म बडी दुर्लभ वस्तु है, इसको पाकर मालिक की भक्ति से गाफिल रहना मामूली गलती नहीं है क्योंकि यह शरीर बडी मुश्किल से प्राप्त होता है। जीव लाखों योनियों के अन्दर फिरता है, करोंडों वर्ष संसार सागर में गोते खाता फिरता है, बेशुमार टेढी योनियों में टक्करें मारता और परेशान फिरा करता है तब कहीं जाकर मनुष्य का शरीर मिलता है। फिर ऐसे अनमोल शरीर को पाकर उसके असली मकसद को ना जानना और तमाम उम्र इन्द्रियों के सुखों में ही प्रवृत्त रहना आखिर अफसोस दिलाता है।
फैला कर पांव जो यहाँ सोता है,
वह सिर पर रख कर हाथ फिर रोता है।
चलते हाथों कुछ कमा ले ओ गाफिल,
क्यों उम्र अजीज मुफत में खोता है।।
इस संसार में हम क्यों आये हैं और किसलिये भेजे गये हैं इस बात की समझ बहुत कम आदमियों को होती है। यहां हमारे जन्म पाने में ईश्वर का कोई खास भेद है। कुदरत के कारखाने में कोई कार्य बगैर मतलब के नहीं हुआ करता। हर काम में मालिक की कोई न कोई गरज छुपी होती है, मनुष्य जन्म बाकी कुल योनियों से क्यों विशेष है ?
इसमें जीव रूहानी तरक्की कर सकता है। वरना शारीरिक आवश्यकताएं तो दूसरी योनियों में भी पूरी हो सकती हैं। इसके सिवाय जितनी योनियां और जितने भी लोक हैं वे सब भोग भूमि हैं। वहां पर जीव अपने किये कर्मों का फल भोगता है। कर्मभूमि केवल यही दुनिया और यही एक शरीर है, इसमें अगर चाहे तो वह मालिक की प्राप्ति का यत्न कर सकता है। स्वर्ग में देवता लोग रहते हैं।
शारीरिक हर तरह के सुख उनको हासिल हैं मगर वे भी परमेश्वर के हजूर में याचना करते रहते हैं कि उनको मनुष्य का चोला मिले जिससे उन्हें रूहानी तरक्की का मौका हाथ आये। इसलिये यह चोला केवल शारीरिक सुखों के लिये ही नहीं मिला, बल्कि मालिक ने अपनी विशेष दया से हमको परलोक की दुरूस्ती के लिये मौका दिया है।
हमको चाहिये कि इसके असली मकसद को समझें और परमार्थ की प्राप्ति के लिये कोई ऐसा रास्ता चुनें, जिस पर चलते हुए हम जन्म-मरण की उलझन से आजाद होकर इसी जन्म में मोक्ष के दरवाजे तक जा पहुँचे।
दुनिया में हम आये थे कि कुछ काम करें,
फिक्र परलोक का कुछ सरंजाम करें।
मगर न इधर ही कुछ ध्यान दिया,
करना तो था नफा मगर नुकसान किया।।
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